महाराष्ट्र का स्वर्ग है महाबलेश्वर

महाराष्ट्र का स्वर्ग है महाबलेश्वर

मुसापिफर देहलवी


भारत की भूमि में प्रत्येक स्थान पर कोई न कोई प्रावृफतिक सौंदर्य स्थल देखने को मिलते ही है, शायद इन्हीं कारणों से भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था, क्योंकि यहां पर चार प्रकार के सुंदर मौसम का जो आनंद है वह अन्य किसी देश में नहीं है, इसी के साथ ध्रती की गोद में खेलती नदियों का वह कलकल करती धराओं का समूह जो अपने आप में ध्रती के अनुपम सौंदर्य की वृ( करने में कापफी सहायक रहा है, उसकी अपनी मिसाल है।


यूं तो हमारे भारत में अनेकों ऐसे रमणीक स्थल है जिसे देखने और घूमने के लिए अनेकों पर्यटक प्रति वर्ष इस प्रावृफतिक सौंदर्य और नजारों का लुफ्रत उठाते है, उन्हीं में हमारे यहां की मालावार हिल या महाबलेश्वर जैसे जो पर्यटन स्थल है उनमें मुंबई में बसे महाराष्ट्र का सबसे बड़ा और अंग्रेजों के कार्यकाल से जुड़ा यह स्टेशन आज भी लोगों को अपनी ओर आकर्षित किये बिना नहीं रहता। भूगोल शास्त्रियों के अनुसार इसकी उंफचाई समुद्र तट से 1372 मीटर बताई गई है। कहते है जब अंग्रजी शासन था तब उन्होंने इस क्षेत्रा को शिमला की भांति गर्मियों के मौसम के अनुसार इस क्षेत्रा को अपनी विश्रामगाह बनाया और कोई आवश्यक कार्य पड़ने पर उसका समाधन भी वह यही करते थे, शायद इसी कारण यह हिल स्टेशन अपनी अनोखी प्रतिष्ठा आज भी बनाए हुए है। क्योंकि यह स्थल अंग्रेजी प्रेंसीडेसी की गर्मियों में एक राजधनी जैसी गरिमा बनाए रहता था, उसके बाद यहां के स्थानीय लोग आम दिनचर्या चलाया करते थे। जानकार सूत्रों के अनुसार इसकी खोज, अंग्रेज अध्किरी सर चार्ल्स मैलेट ने की थी, जिसकी वजह से इसको अंग्रेजी हुकूमत के दौरान इसे मैलकम पीठ भी कहा जाता है। यहां पर बने कुछ चर्चित भवनों में अनेको भवन और कॉटेज बनवाए थे, जिसमें इस पहाड़ी क्षेत्रा को सजाने संवारने का काम किया गया, जो आज भी इस क्षेत्रा में चर्चित है, कहते है अंग्रेजी शासक हमेशा सुंदर और खुले क्षेत्रा में रहना पसंद करते थे, उनके लिए नदी या पहाड़ी क्षेत्रा किसी जन्नत या स्वर्ग से कम नहीं हुआ करते थे। इसी लिए वह भवन निर्माण में अपनी विशेष शैली का उपयोग करते थे। खैर उनकी बनाई हुई इमारतों में शिमला, मंसूरी और कोलकाता, चैन्नई विशेषतौर पर दिल्ली का लुटियन जोंन आज भी अपनी विशेषता रखता है जो अंग्रेजी हुकूमत की विशेष परंपरागत तरीकों से बनाया गया है। खैर इसके साथ ही इसकी एक विशेषता यह भी रही है जिसके लिए कुछ इतिहासकारों का कहना है 13वीं सदी में यादव वंश के राजा सिंघन ने यहां पांच नदियों का उद्गम स्थल बनवाया था, उसी के साथ यहां पर महादेव के मंदिर का भी निर्माण कराया गया, जिसकी वजह से इसे लोग बाद में महाबलेश्वर कहने लगे, तभी से इसे आज तक इसी नाम से पुकारते है।


यहां मुंबई से 250 किलोमीटर  की दूरी पर बहती हुई नदियों और पहाड़ों से गिरते झरनों का अनुपम सौंदर्य ही इसकी अपनी एक विशेषता कही जाती है। जिसके पफलस्वरूप यहां प्रत्येक वर्ष अनेकों सैलानी इसका प्रावृफतिक आनंद लेने के लिए आते है और यह स्थल महाराष्ट्र का ऐसा रमणीक स्थल कहा जाता है, जिसके लिए यह क्षेत्रा अपनी विशेष उपलब्ध्यिं के लिए प्रसि( है, वैसे भी इस क्षेत्रा में हमारे पिफल्म निर्देशक अपनी पिफल्मों में यहां के दृश्यों को कैद करके अपनी प्रतिभा का परिचय देते ही रहते है। घूमने वाले पर्यटकों के साथ यहां पर पिफल्मी सितारों का जमघट भी यहां देखने को मिलता है। इस क्षेत्रा की कुछ अन्य विशेषताएं और अन्य देखने योग्य बहुत कुछ है जिसमें प्रतापगढ़ का किला, पंचगनी, महाबलेश्वर क्लब, लोडविक प्वाइंट, वेष्णा झील, विल्सन प्वाइंट आदि प्रसि( है। प्रतापगढ़ किले में बहुत-सी इतिहास की वह पुरानी तस्वीरे देखने को मिलेगी जहां पर वीर शिवाजी, अपफजल खां की वह दास्तान सुनाई पड़ती है जिसका वह शिलालेख महाराष्ट्र का स्वर्णिम इतिहास का गवाह बना रहा है। जो इस स्थान की एक महत्वपूर्ण ध्रोहर के रूप में देखा जा सकता है। इसी तरह यहां हर क्षेत्रा में अलग-अलग तरह के वह किस्से आज भी इस स्थान पर गूंजते है, जहां पर वीर गाथाओं के साथ स्वास्थ्य मनोरंजन भी हो जाता है।
यहां पर 1829 में बनी उत्वृफष्ट इमारतों में ‘माउंट’ मैलकप  ऐसी प्राचीन इमारत है जो अपने आप में प्राचीन इतिहास की ध्रोहर कही जाती है, लेकिन इसकी उचित देखभाल न होने के कारण यह अपना आकर्षण खोती जा रही है। पिफर भी यहां के इतिहासकारों के अनुसार इसे 1829 में किसने बनवाया था, यह अभी आम आदमी की समझ से बाहर की चीज है। इसी के साथ यहां का प्रतापगढ़ का किला यह शहर से 24 किलोमीटर की दूरी पर है कहते है इस किले का निर्माण 1656 में शिवाजी के एक सिपहसालार ने मरनोपरांत त्रियंबक पिंगले द्वारा करवाया गया था, यह पानाघाट पर स्थित है, इसकी उंफचाई 1100 मीटर है इस किले में ही मराठा शासक शिवाजी ने बीजापुर के सूबेदार अपफजल खां को अपनी नाटकीय योजना द्वारा मृत्यु के घाट उतारा था, इसकी उंफचाई से महाबलेश्वर का अद्भुत नजारा देखा जा सकता है।


लोडविक प्वाइंट समुद्रतल से लगभग 1240 मीटर की उंफचाई पर स्थित यह स्थान प्रावृफतिक सौंदर्य से भरपूर है। यहां पर जनरल लोडविक की याद में उसका स्मारक बना है। इसके पास ही एलप्रिफस्टन प्वाइंट है। इन दो पहाड़ियों के बीच खूबसूरत धोबी झरना है। एलपिफंस्टन प्वाइंट से कोऐना नदी का मनभावन मंजर देखा जा सकता है।

वेष्णा झील
महाबलेश्वर का यह सबसे आकर्षक और प्रावृफतिक सौंदर्य से भरपूर स्थान है। इस झील में पर्यटक नौकायन का आनंद उठा सकते हैं। झील के पास बना गुलाब बाग मनमोहक है। यहां की पहाड़ियों पर अनेक तरह की जड़ी-बूटियां पायी जाती हैं जिसका एक संग्रहालय झील के पास बना है जहां पर्यटक उन्हें देखकर अपना ज्ञान बढ़ा सकते हैं। वेष्णा झील के पास ही रॉबर्ट गुपफा और पीक भी है जो अपने प्रावृफतिक सौंदर्य से पर्यटकों को आकर्षित करती है।


विल्सन प्वाइंट


विल्सन प्वाइंट समुद्रतल से 1435 मीटर की उंफचाई पर स्थित है। यह महाबलेश्वर का सबसे उंफचा स्थल है। यहां से पर्यटक दूर-दूर तक पैफले दक्कन के पठार का मनभावन दृश्य देखने आते हैं। इस स्थान में मकरंदगढ़, लिंगमाला प्रपात, कमलगढ़ और ध्ुरंध्र का किला देखने के साथ ही पर्यटक आकर्षक सूर्योदय भी देख सकते हैं।

महाबलेश्वर क्लब
1888 में बनाया गया यह क्लब आज भी बेहतर स्थिति में है पर यहां वही लोग ठहर सकते हैं जो इसके सदस्य होते हैं। यहां एक गोल्पफ का मैदान है। यहां का गुलाबों का बाग बेहद लोकप्रिय है, यहां व्रिफसमस पर कापफी भीड़ रहती है।

पंचगनी
पंचगनी का मनभावन मौसम, आकर्षक प्रावृफतिक सौंदर्य, रोमांच उत्पन्न कर देने वाली घाटियां थोड़ी-थोड़ी दूरी पर बसे छोटे-छोटे गांव और चांदी जैसीसपेफद जलधरा के साथ बहती नदियां पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती हैं। 5 पहाड़ियों से घिरे होने के कारण इस स्थान का नाम पंचगनी पड़ा। समुद्रतल से 1334 मीटर की उंफचाई पर बसा यह स्थान महाबलेश्वर से मात्रा 38 किलोमीटर की दूरी पर है। यहां का प्रमुख आकर्षण टेबल लैंड है, जो पहाड़ की चोटी पर समल मैदान है जहां से एक ओर मैदानों की हरियाली दिखाई देती है तो दूसरी ओर बादलों का दृश्य देखने में बेहद सुंदर प्रतीत होता है। पंचगनी में वृफष्णा नदी का कर्णप्रिय कलकल करता स्वर बड़े-बड़े छायादार पेड़ों का झुरमुट आकर्षक दृश्य प्रस्तुत करता है। यहां विश्वभर के विदेशी पफलदार वृक्ष जैसे प्रफांस के पाइन, स्काटलैंड के प्लम, बोस्टन के अंगूर व रत्नगिरि आम आदि लगे हैं। यह जानकारी आपको टूरिज्म विभाग से मिल जाएगी।




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