{best} पुरानी पहचान खोता दिल्ली का कनॉट प्लेस

पुरानी पहचान खोता दिल्ली का कनॉट प्लेस

मुसापिफर देहलवी


नई दिल्ली में आजकल चारों ओर जहां प्रगति को लेकर एक उठापटक का माहौल दिखाई दे रहा है जिसमें जगह-जगह खुदाई और बड़े-बड़े गढ्ड़ों का साम्राज्य नजर आ रहा है। हालांकि यह कार्य कॉमनवेल्थ गेम्स के आरंभ होने से पूर्व ही हो जाने चाहिए थे, लेकिन अब गेम्स को समाप्त हुए भी लगभग तीन वर्ष हो गए लेकिन अभी तक यह कार्य विभागीय अड़चनों और बजट की मारामारी के चलते अभी तक पूर्ण होने का नाम नहीं ले रहा, जबकि सरकार और एम.सी.डी. विभाग अपनी कार्यप्रणाली के चलते बहुत कुछ ऐसे दावो की घोषणा तो कर देता है लेकिन वही कार्य प्रगति के नाम पर कछुआ चाल से चलने के अतिरिक्त एक अच्छी खासी मुसीबत बना हुआ है। इन दिनों एम.सी.डी. तथा मैट्रो प्रोजेक्ट के साथ कई स्थानों पर अंडरपास योजनाओं का कार्य तेजी से चल रहा है, लेकिन यह तमाम कार्य तेजी के नाम पर केवल एक तरह के काम अटकाउफ बजट व ठेकेदारी के समय सीमा समाप्त होने तक ही चलते है, इसके लिए कोई भी कार्य निर्धरित सीमा में पूरा किया जाना किसी अजूबे से कम नहीं कहा जा सकता। 
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लेकिन समय सीमा के भीतर जो कार्य होने थे वह तो हमारे यहां कई वर्षो तक की सीमा लांघ जाते है और उसी तर्ज पर दिल्ली का कनॉट प्लेस भी उसी कार्य प(ति का दंश झेलता नजर आ रहा है जहां पर आवश्यकता से अध्कि उसके सौंदर्यकरण के नाम पर उसका वास्तविक स्वरूप ही बिगड़ गया है। उसे जहां सुंदर बनाने का दावा सरकार तथा उनसे सम्मलित विभाग कर रहे है वही उसकी दशा पहले से अब अध्कि बदत्तर हो गई है। कनॉट प्लेस के यूं तो उसके सौंदर्यीकरण के नाम पर अनेकों बार बदलाव किए गए इतना ही नहीं मैट्रो स्टेशन से पहले इसके सेंट्रल पार्क को अनेकों बार बदला गया, जिसमें एशिया का सबसे उंफचा पुफव्वारा जो कई लाखों की लागत से बनवाया गया था उसे तोड़ यहां राजीव गांध्ी मैट्रो स्टेशन का निर्माण किया गया।


हालांकि अभी भी इसका निर्माण कार्य समाप्त नहीं हुआ है, पिछले अधूरे कार्यो के साथ एक सब-बे बनाने की कवायद चल रही है जबकि यहां के व्यापारियों का कहना है कि यहां की मेन समस्या पार्किग की थी, जो मल्टी लेवल पार्किग के यप में बन भी गई है, इसके साथ सेंट्रल पार्क में अंडर ग्राउंड पार्किग भी बनी हुई है, लेकिन कनॉट प्लेस की चकाचौंध् और दुकानों का ग्लेमर लोगों को अपनी ओर बराबर आकर्षित करता रहा है। जिससे इस क्षेत्रा में कापफी भीड़ देखी जा सकती है। इसमें दिल्ली से अध्कि बाहर से आने वाले लोगों की भीड़ कुछ ज्यादा ही देखी जा सकती है। हालांकि अब यहां के प्रसि( होटल भी बंद हो चुके है, जिसकी वजह से कनॉट प्लेस की शान थी, लेकिन अब नामी व्यापारियों के वह शोरूम या तो लगभग बंद हो गए है या पिफर उनके मालिकों ने अपना पुश्तैनी धंध बंद कर दिया है बहुत से नए होटल व कार्यालय खुल गए है, बहुत से शोरूम बंद भी हो गए है।



जिनमें रीगल बिलि्ंडग का स्टेंर्ड होटल गेंदामल हेमराज बैगर्र रेस्टोरेंट और मैव्रफोपोलो शॉप, मपफतलाल का शोरूम, मद्रास होटल, नरुला ;पेस्ट्री शॉपद्ध साहिब सिंह कैमिस्ट, बैन्ड बॉक्स,  स्नोव्हाइट ड्राई क्लीनर आदि बंद होने से यहां की पुरानी शानोशौकत लगभग समाप्त हो गई है। इसी के साथ कुछ चर्चित बार व होटल व दुकाने शामिल है, रिवोली, प्लाजा और ओडियन सिनेमा में वह पहली सी चहल पहल नहीं दिखाई देती, जो सिंगल स्व्रफीन के रूप में कभी हुआ करती थी। वह अब पी.वी.आर. में बदल गए है। इसी के साथ वहां के सैंट्रल पार्क में जहां कभी लोग सकून से घूमते पिफरते नजर आते थे, अब वही मैट्रो स्टेशन के यात्रियों की भीड़ और उसके आसपास के पुफटपाथ पर रेहडी, पटरी के दुकानदारों का जमावड़ा ही दिखाई देता है। जिससे अच्छी खासी सुंदरता को ग्रहण लगता नजर आ रहा है। क्योंकि कनॉट प्लेस के बाहरी क्षेत्रा तथा भीतरी सर्कल के पुफटपाट या तो लोकल हॉकरों की वजह से घिरे नजर आते है या उनके आसपास खड़ी गाड़ियों का जमघट दोनों ही कनॉट प्लेस की सुंदरता का वह स्वरूप ध्ूमिल करते हुए अपनी वास्तविक आभा खो रहे है। जबकि सरकार द्वारा उसकी सुंदरता को बरकरार रखने के लिए सौंदर्यकरण को लेकर करोड़ों रुपया पूफंक चुकी है, उसके बावजूद इस क्षेत्रा में गदंगी और भीतरी सर्कल में कीचड़ गड्ढे और टूटे पूफटें स्थान दिखाई देते है, यद्यपि एम.सी.डी. द्वारा समस्त कनॉट प्लेस की बाहरी सुंदरता पर करोड़ों रुपया खर्च कर चुकी है, वही दूसरी ओर कनॉट के पार्क पुफटपाथ और उसके पीछे के हिस्सों में कापफी कुछ बदलाव की आवश्यकता है लेकिन वह सब इतना आसान नहीं है और कनॉट प्लेस की पुरानी दुकाने अध्किंश रूप से अपनी पुरानी पहचान खो चुकी है, नई दुकाने एक आध् रूप से देखने को मिल जाती है। जिसमें भारत के विभाजन से पूर्व के कुछ पुराने लोगों का निवास भी इनके बीच आज भी है।


लेकिन पुराने कनॉट प्लेस के बीच आज जो बदलाव आया है उससे अब वहां का वास्तविक स्वरूप भी बदल गया है। इसके आसपास का क्षेत्रा जिसमें शिवाजी स्टेडियम, मिन्टो ब्रिज, रेलवे स्टेशन, कोका कोला का वह प्लांट जो अब पूर्णरूप से बंद हो चुका है, सिंधिया हाउस में एलाईड मोटर, प्यारे लाल बिलि्ंडग, प्रेमनाथ मोटर्स शंकर मार्किट के पास सुपर बाजार  का बाजार जो लगभग बंद हो गया है। ले देकर अब कनॉट प्लेस का हनुमान मंदिर ही पुरानी सांस्वृफति समेटे हुए चर्चित है। लेकिन अंग्रेजों के जमाने का बना कनॉट प्लेस अपनी पुरानी आभा खोता हुआ दिखाई दे रहा है।


पुराने लोगों के अनुसार अब यह शाही बाजार किसी गांव की पैट से बद्दतर हालत में पहुंच गया है जिसके लिए कापफी हद तक पुफटपाथ पर बाजार लगो वालों की भीड़ तथा बाहरी लोगों का आना ही इस क्षेत्रा के लिए एक अभिशाप नजर आता है। जो सरकार तथा प्रशासन के लिए एक चुनौती बना हुआ है। इन तमाम भीड़भाड़ के बीच कनॉट प्लेस के आने वाले लोग इसे सी.पी. कहकर इसे बुलाते अवश्य है। परंतु यह कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी कि अब अंग्रेजों का बनाया कनॉट प्लेस एक गांव की पैठ के समान एक भीड़भाड़ वाला शॉपिंग सेंटर बन गया है।






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