{why} कायम है शाहरूख व कैटरीना का रूमानी जलवा ?

कायम है शाहरूख व कैटरीना का रूमानी जलवा


मुसापिफर देहलवी
जहां तक पिफल्म ‘जब तक है जान’ का प्रश्न है, उसकी विशेषता यही है जिसकी वजह से हम उसे एक चर्चित लीजेंड पिफल्म मेकर की एक ऐसी उपलब्धि् मान कर भी उस दौर को याद कर सकते है जब कश्मीर की रोमांटिक वादियों में कभी बर्पफ से ढके पहाड़ों के बीच चीनारों के लम्बे दरख्तों और झील में तैरते रंग बिरंगे शिकारों में गीत गाते रूमानी जोड़े अपनी अदाओं का जादू बिखेरते हुए पर्दे पर नजर आते थे।



जिनमें कभी जॉय मुखर्जी, साध्ना, आशा पारेख, शम्मी कपूर, शर्मिला टैगोर, सायरा बानो, राजेंद्र कुमार, शशि कपूर, नंदा जैसे अदाकारों के साथ ‘एक मुसापिफर एक हसीना’, ‘पिफर वही दिल लाया हूं’, ‘कश्मीर की कली’, ‘जंगली’, ‘प्रोपेफसर’, ‘आरजू’, ‘अर्पण’, ‘आशा’ जिसमें जुबली कुमार राजेंद्र कुमार व साध्ना, जितेंद्र रीनाराय हुआ करते थे। ‘जब जब पूफल खिले’ और राजेश खन्ना की अनेकों पिफल्मों की शूटिंग हुआ करती थी और यह दौर कापफी खुशनुमा माहौल को दर्शाता था, उस समय कश्मीर में आतंकवाद की काली छाया और बारूदी शोलों के बीच सुलगता कश्मीर नहीं था वह एक शांत वातावरण में एक संतूर की सरगम में झनझनाता प्यार मोहब्बत का गीत गाने वाला कश्मीर था जिसका उदाहरण देकर हमारे पिफल्मी निर्माता उस जन्नत के नजारे को अपने कैमरे में कैद करने को बेताब रहते थे, शायद इसी के चलते इन तमाम पिफल्मों का मिजाज भी उस समय की नजाकत को देखकर ही पटकथा के रूप में उतारा जाता था। कश्मीर के सौंदर्य और खूबसूरती को लेकर जो कथानक लिखे गए वह आज भी दर्शकों के मन मस्तिष्क पर अंकित है।

लेकिन कश्मीर में कुछ वर्षो से इस सुलगते माहौल में पिफल्मों के निर्माण का चलन तकरीबन बंद हो गया। लेकिन लंबे अंतराल के बाद जब कश्मीर के मौसम ने अमन की पिफजां में सांस लेना शुरू किया तो मानो कश्मीर के उन लोगों को भी नया जीवनदान मिल गया जो लोग बरसों से आतंक के माहौल से ग्रस्त होकर भय के साये में जी रहे थे।
खैर! एक लंबे समय के बाद यश चोपड़ा ने अपनी पिफल्म ‘जब तक है जान’ के कथानक में कश्मीर की वादियों में उन दृश्यों को पिफल्माने की कोशिश की जिनको कभी शक्ति सामंत, रामानंद सागर, आर.के. नैÕयर, सुबोध् मुखर्जी और बी.आर. चोपड़ा ने अपनी पिफल्मों के उन दृश्यों की तस्वीर आम लोगों के समक्ष प्रस्तुत की थी।


हालांकि ‘जब तक है जान’ से पहले शाहरूख खान और सलमान खान, आमिर खान, कैटरीना कैपफ व प्रियंका चोपड़ा, काजोल और बिपाशा बसु व संजय दत्त की कापफी पिफल्में बनी है और विदेशी लोकेशन पर अमिताभ बच्चन भी कई बार पर्दे पर अपनी छवि प्रस्तुत कर चुके हैं।
परंतु ‘जब तक है जान’ में शाहरूख खान व कैटरीना कैपफ के साथ अनुष्कि की यह ट्रैंगल लव स्टोरी का एक पारिवारिक परिवेश देखकर लोगों को जो नवीनता अब दिखाई दी वह प्रथा हिंदी पिफल्मों से लुप्त होती जा रही थी और आजकल जिस परिवेश की पिफल्मों का माहौल बन गया है उसे देखकर तो यह महसूस होता था कि जैसे अब रूमानी और पारिवारिक पिफल्मों का दौर जैसे समाप्त हो गया।
खैर! कश्मीर की वादियों में शाहरूख खान और कैटरीना कैपफ की कोई हिंदी पिफल्म दर्शकों के समक्ष नहीं आई थी। जिसके लिए उनका रोमांटिक प्रेम प्रसंग पर्दे पर दिखाई दे। लेकिन इस कमी को यश चोपड़ा की सोच ने जब तक है जान को अपने कैनवास में उतार कर अपना यह दायित्व भी पूरा कर दिया लेकिन दुर्भाग्यवश वह अपनी इस पिफल्म का प्रीमियर भी नहीं देख पाए। आज भले ही ‘जब तक है जान’ के समक्ष अजय देवगन की ‘सन आपफ सरदार’ भी रिलीज हुई जिसके दर्शकों की अपनी अलग सोच है। उसकी पहुंच से कोसों दूर अजय देवगन यह पिफल्म केवल युवा पीढ़ी की पसंद कही जा रही है, वहीं दूसरी ओर पारिवारिक और रोमांटिक अंदाज की पिफल्मों का नायक शाहरूख खान पर्दे पर नई जोड़ी के साथ उभर कर आया है हालांकि इससे पूर्व कैटरीना कैपफ, सलमान व अनिल कपूर, अक्षय कुमार के साथ पर्दे पर दिखाई दी थी।
लेकिन शाहरूख खान की इस जोड़ी ने अपनी जो नई इमेज बनाई उसे देखकर सभी इस जोड़ी का स्वागत कर रहे है। जिसमें प्रेम से जुड़ी ऐसे आर्मी अपफसर की कहानी है जो पर्दे पर लद्दाख बॉर्डर पर तैनात जाबांज आनंद ;शाहरूख खानद्ध है। इसी के साथ एक डॉक्यूमेंटरी बनाने वाली बिंदास तबीयत की अकीरा का रोल ;अनुष्का शर्माद्ध ने निभाया है, जो इस पिफल्म के नायक से प्यार करती है इसी के साथ कहानी के कई पार्ट है जिसमें कुछ हिस्सा फ्रलैश बैक में दिखाई देता है, जहां समर आनंद अमीर एन.आर.आर. पैफमिली की मीरा थापर ;कैटरीना कैपफद्ध से प्रेम करता है। लेकिन यहां पर कुछ मजबूरियां आती है जिसके चलते कुछ दूरियां बनाने की बात आती है जहां कुछ नई घटनाएं के प्रसंग सामने आते है और तीसरे पार्ट में पिफल्म त्रिकोन के दायरे से दूर होती हुई रंगीन दृश्यों में उलझी रहती है। शायद यही एक इस पिफल्म की वास्तविकता है जो यश चोपड़ा की पिफल्मों में लोकेशन को देखकर लगता है। हालांकि इस पिफल्म में वह सब प्रसंग दिखाई देते है, जिन्हें हम पहले भी कई बार देख चुके है,जिसमें राखी, शर्मिला टैगोर की पिफल्में रही है।

इसके लिए यश चोपड़ा की सोच को साध्ूवाद देना आवश्यक है इस तरह के दृश्यों के लिए वह लीजेंट शो मैन कहलाते भी थे। ‘जब तक है जान’ में शायद आज के दर्शकों को इस पिफल्म के लम्बे दृश्य भले न लगे। लेकिन वह अपनी पहचान बनाए रखते है। गीतों और संगीत के लिहाज से वह ठीक है, कुछ गीत लोकप्रिय भी हुए है। कुल मिलाकर यश चोपड़ा की ‘जब तक है जान’ में शाहरूख खान कैटरीना कैपफ की रोमांटिक जोड़ी ने अपना एक पिफल्मी इतिहास बना ही लिया, जो हमेशा यश राज पिफल्मों की श्रेणी में याद किया जाएगा। क्योंकि शाहरूख की रूमानी छवि, कैटरीना कैपफ की अदाओं के साथ पर्दे पर नहीं दिखाई दी थी। जो ‘जब तक है जान’ में निर्माता-निर्देशक के सपने को साकार करता है।










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