{best of manna dey} सुनहरी आवाज़ का जादूगर, कव्वालियों का बेताज़ बादशाहःमन्ना डे

सुनहरी आवाज़ का जादूगर, कव्वालियों का बेताज़ बादशाहःमन्ना डे

मुसापिफर देहलवी


अपने जमाने के सुप्रसि( गायक जिन्हें कव्वालियों का बेताज़ बादशाह कहा जाता है उनको दादा साहब पफाल्के पुरस्कार के लिए चुना गया तथा यह पुरस्कार माननीय राष्ट्रपति द्वारा 21 अक्टूबर, 2009 को प्रदान किया गया। ज्ञात रहे कि यह पुरस्कार अपने जमाने के अनेकों पिफल्मकारों तथा गायकों को दिया जा चुका है और इस पुरस्कार को प्राप्त करने वाले वे 55वें व्यक्तित्व थे।
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ज्ञातव्य हो कि गायक मन्ना डे संगीत की दुनिया में सन् 1950 से प्लेबैक सिंगर के रूप में अपना स्थान बनाए हुए हैं। मो. रपफी, मुकेश तथा गायक महेंद्र कपूर के अतिरिक्त सुनहरी आवाज के जादूगर कहलाने वाले गायक मन्ना डे शास्त्राय संगीत तथा भारतीय रागरागनियों के बेहतरीन गायक के रूप में जो महारत हासिल है उस गायकी का रंग शायद आज के नये गायकों के पास नाम मात्रा ही हो।

 अपने जमाने में जहां मो. रपफी और के.एल. सहगल जैसे ध्ुरंध्र गायकों का बोलबाला रहा वहीं गायक मन्ना डे ने अपनी आवाज के जादू से श्रोताओं को अपनी ओर आकर्षित कर उनके दिलोदिमाग में आज भी वही लोकप्रियता बनाए रखी है जैसा कि पहले हुआ करती थी। उनकी गायिकी में कव्वाली और शास्त्राय संगीत का जो रंग उभरकर सामने आता था वह आज भी दर्शकों को भावविभोर कर देता है जिसमें उन्होंने संगीतकार नौशाद, शंकर जयकिशन, हेमंत कुमार, कल्याणजी आनंदजी, वसंत देसाई, मदन मोहन और एस.एन. त्रिपाठी जैसे संगीतकारों के साथ धर्मिक तथा शास्त्राय गीतों काजो चलन माईथालॉजिकल पिफल्मों में अपनी गायिकी द्वारा प्रस्तुत किया है वह आज भी तरोताज़ा नजर आता है जिसमें उनके द्वारा गाये गीत आज भी श्रोताओं को उसी पल और लम्हों की याद दिलाते हैं जिसमें वे कभी जिया करते थे तथा संपूर्ण रामायण, पृथ्वी राज चौहान, वक्त, जंजीर, उपकार, सपफर, शादी, पालकी जैसी अनेकों पिफल्मों हैं


जिनके गीत आज भी पर्दे पर नयेपन के साथ एक कशिश पैदा कर देती है। उनके गीतों में- ‘दिल ही तो है’, ‘यारी है ईमान मेरा यार मेरी जिंदगी’, ‘मेरे घर से प्यार की पालकी चली गई’, ‘किसने चिलमन से मारा नजारा मुझ, ‘नदिया चले चले रे धरा तुझको चलना ही होगा, ‘कसमें वादे प्यार वपफा’, ‘लागा चुनरी में दाग छुपाउंफ कैसे’, ‘ध्रती क्यों विपरीत हुई क्यों विरु( आकाश हुआ’, ‘दिल को बहलाने वाली ये दिल्ली की कहानी है’, ‘निर्बल से लड़ाई बलवान की’ पिफल्म काबुली वाला का यह गीत ‘ऐ मेरे प्यारे वतन तुझ पे दिल कुर्बान’ जैसे गीतों के साथ इनकी कव्वालियों में जो सुनहरी आवाज की खनक सुनने को मिलती है वह अपने आपमें बेमिसाल हैं जिसमें पिफल्म ‘बरसात की रात’ की कव्वाली ‘न तो कारवां की तलाश है न तो हम सपफर की तलाश है’ पिफल्म ‘वक़्त’ की यह कव्वाली ‘ऐ मेरी जोहराजबीं’, पिफल्म ‘पालकी’ की कव्वाली ‘मैं इध्र जाउं। या उध्र जाउंफ’ पिफल्म ‘शादी’ की कव्वाली ‘मैं तो आशिक हूं रात की स्याही का’ जैसी अनेकों बेशुमार कव्वालियां है


जो उन्हें कव्वालियों का बेताज़ बादशाह कहने को मजबूर करती हैं और इसी कारण वे आम श्रोताओं के बीच आज भी नजरआते हैं। इसी तरह अनेकों कव्वाली और गीत जिनकों आज भी सुनने के बाद यह नहीं कहा जा सकता कि यह पुराने गीतों के अंदाज हैं  तथा उन्होंने 3500 से ज्यादा गानों की रिकार्डिंग विभिन्न संगीतकारों के साथ की। उनकी इस हुनरमंदी, गायकी और संगीत कैरियर के लिए उन्हें विभिन्न पुरस्कारों से नवाजा भी जा चुका है। उन्हें हिंदी पिफल्म ‘मेरे हजूर’ और बंगाली पिफल्म ‘निशि पदम’ के लिए सर्वश्रेष्ठ पुरुष प्लेबैक गायक के तौर पर राष्ट्रीय पिफल्म पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है। इसके साथ ही उन्हें प्रतिष्ठित पद्मश्री और पद्भूषण पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया है। मन्ना डे ने अपने पिफल्मी संगीत कैरियर की शुरूआत 1943 में ‘तमन्ना’ में गायकी के साथ की थी। इस पिफल्म का गीत बहुत ही लोकप्रिय हुआ था। 1 मई 1919 को जन्मे मन्ना डे का असल नाम प्रबोध् चंद्र देय तथापिता का नाम पूर्ण चंद्र एवं माता का नाम महामाया देवी है।



गायक मन्ना डे ने जिस तरह अपने संगीत का सपफर बहुत ही शालीनता और आडम्बरों से दूर रहकर पिफल्म जगत में तय किया वह एक बेहतरीन मिसाल कही जा सकती है जिसमें उन्होंने ग्लैमर की दुनिया में रहने के बावजूद भी अपने जीवन को सादगीपूर्ण गुजारते रहे हैं यही तमाम बातें उनकी महानता और गौरव को बढ़ाने में अपना विशेष योगदान देती आ रही हैं जिसके लिए वह दादा पफाल्के अवार्ड पुरस्कार हेतु बधई के पात्रा कहे जा सकते हैं।



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