{BEST ONE} बाजे का सिर्पफ शोर है संगीत कहाँ हैं?

बाजे का सिर्पफ शोर है संगीत कहाँ हैं?

मुसापिफर देहलवी


आज से कुछ वर्ष पहले प्रसि( संगीतकार ने पाश्चात्य संगीत की ध्ुनों को सुनकर एक बात कही थी कि ‘‘बाजे का सिर्पफ शोर है संगीत कहाँ है?’’ शायद यही बात संगीतकार नौशाद की उस कही हुई बात को सि( करते नजर आ रहे हैं जिसमें नये संगीतकारों में आज की पिफल्मों में जो रॉक संगीत के नाम हो-हल्ला मचाया जा रहा है उसके लिए सबसे अध्कि दोषी पिफल्म के निर्माता तथा संगीतकार कहे जाएं तो गलत न होगा।
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आज की पिफल्मों के संगीतकार तथा उनके निर्माताओं की सोच पर दर्शक इसलिए हंसने लगे हैं कि अब न तो निर्माता के पास कहानी रही है और न ही संगीतकारों के पास कोई दिल को छू लेने वाला कर्णप्रिय संगीत। पहले की पिफल्मों की बात करें तो अगर किसी पिफल्म की कहानी कमजोर भी रही हो तो गीतों के जरिए पिफल्मों को हिट करार दे दिया जाता था लेकिन आज के संगीतकार जो पाश्चात्य तथा रॉक म्युज़िक के नाम पर कानपफोडू संगीत द्वारा ढोल पीटकर जो शोर-शराबा मचा रहे हैं उसको देखते हुए यह नहीं कहा जा सकता है कि अब पिफल्मों में बेहतरीन संगीतकार रह गये हैं। वास्तव में आज के संगीतकार जिनमें सबसे बड़ा रॉक स्टार कहलाने वाला जिसे लोग संगीतकार के नाम पर केवल बैंड बजाउफ संगीतकर कह सकते हैं वह न तो बेहतरीन गायक ही बन पाया और न ही बेहतरीन संगीतकार जबकि अपने आप को आजकल अभिनेता के रूप में प्रचारित करने की अग्रिम भूमिका निभा रहा है दर्शकों के लिए केवल इतना इशारा ही कापफी है। इस श्रेणी में केवल हिमेश जैसे संगीतकार ही नहीं बल्कि ए.आर. रहमान, अनु मलिक, विशाल शेखर और विजय भारद्वाज जैसे कुछ संगीतकारों ने जो संगीत के नाम पर उठापटक तथा रॉक के नाम पर शोर शराबे तथा चिल्लाने वाले गीतों को तरजीह दे रहे हैं उनके संगीत में गीत कम तथा बाजों का शोर ज्यादा ही सुनाई देता है।

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 उसे देखकर यही कहा जा सकता है कि ये तमाम संगीतकार संगीत के नाम पर महज कानपफोडू संगीत द्वारा केवल शोर मचाकर श्रोताओं के मन में हाई ब्लड प्रेशर और टेंशन जैसी बीमारियों को अंजाम दे रहे हैं जिसके चलते लोग मानसिक तनाव से ग्रस्त और मन लुभावने संगीत से कोसो दूर हैं शायद यही कारण है कि जिसके कारण आज भी पुराने संगीतकारों का संगीत दिल को सुकून पहुंचाने में दवा का काम कर रहा है जिसमें कुछ पिफल्मी चैनल तथा एलबमों द्वारा पुराने संगीतों को पुनः रीमेक का नाम देकर उसे मार्केट में उतारा है। इसी से नये संगीतकारों के संगीत को लेकर जो पिफल्म इंडस्ट्री में जो संगीत की कमी दिखाई देती है वह पिफल्मी मण्डी में बेहतर संगीत न होने के कारण पिफल्मों को फ्रलाप करार दे रही है उसका ज्वंलत उदाहरण कुछ ऐसी पुरानी पिफल्में हैं जिन्हें निर्माताओं ने दोबारा बनाकर पर्दे पर प्रस्तुत किया जिसमें उमराव जान, डॉन, देवदास, कर्ज आदि जैसी पिफल्में इसका ज्वलंत उदाहरण कही जा सकती हैं जबकि पुरानी पिफल्मों के संगीत के दम पर इन्होंने सिल्वर तथा गोल्डन जुबली मनाई थी लेकिन नई पिफल्मों के संगीतकारों ने इस दिशा में कोई ऐसा बेहतरीन संगीत नहीं दिया जिसके लिए दर्शक या श्रोता उस गीत को बार-बार सुने और इन रीमेक पिफल्मों के फ्रलॉप होने का मुख्य कारण संगीतकारों का कमजोर पक्ष ही कहा जा सकता है। शायद इसीलिए प्रसि( गायक महेंद्र कपूर तथा एक प्रसि( निर्माता ने यह बात कही थी कि जब हिमेश जैसे संगीतकार इंडस्ट्री में हो तो हमारे जैसे गायकों की क्या जरूरत होगी।
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शायद इसी तरह के अनेकों विवाद संगीतकार अनुमलिक और विशाल भारद्वाज तथा विशाल शेखर के नाम पर भी उभरकर सामने आए हैं इसमें सूपफी गायक के नाम पर अध्कि दम भरने वाले कैलाश खेर जो केवल चिल्लाने के अतिरिक्त कुछ अध्कि नहीं कर पाये वह सूपफी गायकी का दम भरते नहीं अघाते जबकि सूपफी गायकों में हंसराज हंस जैसे पंजाबी गायक की एक अपनी अलग पहलचान रही है जिसमें उन्होंने सूपफी गायकों के संगीत को बरकरार रखने में वही सूपिफयाना रंग का प्रयोग किया है। उनकी गायकी में जो वास्तविक लोक गायकी का रंग झलकता है वह अपने आप में बेहतरीन संगीतकार की पहचान कहीं जा सकती है। इसी तरह बहुत सारे संगीतकार जो भारतीय परंपरा से जुड़े संगीत को पर्दे पर प्रस्तुत कर रहे हैं उनमें गुलाम अली खां, नुसरत पफतेह अली खान, जगजीत सिंह जैसे लोग अपनी गायकी और संगीत के नाम पर आज भी याद किये जाते हैं।
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शायद यही कारण है कि आज लोग पुराने संगीतकारों में शंकर जयकिशन, कल्याण जी आनंद जी, नौशाद, वसंत देसाई, लक्ष्मीकांत प्यारेलाल जैसे संगीतकारों के दम पर पिफल्मों में आज भी वह लोकप्रियता हासिल है जो नये संगीतकार केवल पाश्चात्य संगीत के नाम पर ढोल तथा बाजों के शोर में ही प्रस्तुत कर सस्ती लोकप्रियता हासिल कर रहे हैं। हालांकि इन दिनों इंडियन आइडल के नाम पर जो तमाशा दिखाया जा रहा है उसमें भी कोई खास दज नजर नहीं आता जिससे नई पीढ़ी के गायक कुछ कर दिखाये क्योंकि वे परंपरागत गीत-संगीत की पहुंच से कोसो दूर हैं।





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