{NEW} लुटियन्स ज़ोन की विरासत को कौन बचाएगा

लुटियन्स ज़ोन की विरासत को कौन बचाएगा?

मुसापिफर देहलवी

आज लुटियन जोन में बनी इमारतों के साथ भारत के राष्ट्रपति निवास ;राष्ट्रपति भवनद्ध हैरिटज की पुरानी विरासत होने की वजह से उसके भीतर परिसर में किसी भी तरह का निर्माण व उसके भीतर किसी भी तरह की रद्दोबदल के लिए उसे भी अवैध् निर्माण की संज्ञा दी जा रही है। सूत्रों के अनुसार अंग्रेजी कार्यकाल के दौरान हुए पुरानी ध्रोहर के रूप में राष्ट्रपति भवन सहित उसके आसपास के क्षेत्रा के वह तमाम बगलें भी शामिल है जिनका निर्माण सन् 1916 से लेकर 1930 के दौरान हुआ। इन बगलों के आसपास के क्षेत्रों में पुरानी इटली व लंदन की तर्ज पर खुले पार्क, सड़क, गार्डन सहित बंगले के चारों तरपफ हरियाली और उसके पीछे ही अंग्रेजी अध्किरियों के नौकरों के लिए सर्वेन्ट र्क्वाटर सहित मैस व गाय बांध्ने के स्थान के गाड़ी आदि के लिए गैरेज की व्यवस्था भी देखी जा सकती है।
Sources: Google


शायद इसी तरह के वास्तुकारों के निर्मित रायसीना हिल्स के साथ लुटियन जोन की जो शाही पहचान सारे भारत में बनी हुई है। अगर हम विजय चौक पर खड़े होकर उन तमाम वस्तुओं को ध्यान पूर्वक देखे तो वह क्षेत्रा आज भी हमें एक छोटे लंदन का हिस्सा दिखाई देता है। जिसमें पुराने लंदन की छवि आज भारत के कुछ उन भवन निर्माण पर बखूबी देखने को मिलती है जिसमें कोलकाता का विक्टोरिया भवन तथा मुंबई के गेटवे ऑपफ इंडिया सहित पफोर्ट एरिया व विक्टोरिया टर्मिनल  विक्टोरिया रेलवे स्टेशन जिसे संक्षिप्त में वीटी के नाम से जानते है। खैर! अंग्रेजी काल की वह तमाम ध्रोहर आज भी अंग्रेजी वास्तुकाल और भवन निर्माण के लिए कापफी प्रसि( रही है जिनमें जनपथ की इर्स्टन कोर्ट, वेर्स्टन कोर्ट, गोल डाक खाना, गोल मार्केट सहित तथा रायसीना रोड पर बना पुराना रायसीना होस्टल का ;प्रेस क्लबद्ध जो कभी रायसीना होस्टल का डॉयनिग हाल था। वह स्थान टूटने के बाद वहां पर केवल ब्रिटिश काल की वह इमारत आज भी दिखाई देती है। इसी के सामने चेम्सपफोर्ड क्लब, विक्टोरिया सेन्ट्रल विस्ता मेस जहां पर आज इंदिरा गांध्ी सांस्वृफतिक केंद्र बना दिया गया है।

Sources: Google


इसी के सामने पुराना टकसाल भवन जिसे आर्कैलॉजी कहा जाता है। इतना ही नहीं रायसीना रोड डॉ. राजेंद्र पसाद रोड, हेस्टिंग रोड, वृफष्णा मेनन मार्ग, डलहौजी रोड, डुप्लेक्स रोड, मोतीलाल नेहरू मार्ग, सुनहरी बाग रोड, पिफरोजशाह रोड, अशोक रोड आदि पर वह तमाम पुराने बंगले आज भी आबाद है। यह तमाम बंगले अंग्रेजी कार्यकाल के समय के निर्मित है। लेकिन आज इन बंगलों को लेकर कुछ एक बंगले देखरेख न होने के कारण भले ही जर्र-जर्र अवस्था में पहुंच गए हो, लेकिन आजकल कुछ नए अनुभवहीन इंजीनियरों द्वारा यह कहा जाना कापफी हास्यपद माना जा रहा है कि इन भवनों की आयु लगभग 40-50 वर्ष तक ही होती है। लेकिन अब इन भवनों की मजबूती लगभग समाप्त होती नजर आ रही है।

इसके लिए कुछ पुराने लोग इस बात से सहमत नहीं है कि वह बंगले अब असुरक्षित है या उनके बने रहने से खतरा है, क्योंकि यह भवन केवल एक मंजिले है, इसी के साथ इनकी दीवारे 2 से ढाई पुफट चौडी तथा पुराने जमाने के पिलरों में डॉट की कसाई का कार्य है, इसकी चिनाई चूना पत्थर आदि से की गई है, जिसकी वजह से इन भवनों को बिना किसी तोड़पफोड़ के किसी भी तरह की क्षति पहुंचने की संभावना कम ही रह जाती है। जो आज के सिमेंटेड भवन के निर्माण से कहीं अध्कि मजबूत और सुरक्षित है।
Source: Google

इसका एक ज्वलंत उदाहरण सीपीडब्ल्यूडी के उन कार्यो से ही लगाया जा सकता है जिनमें विनय नगर और सेवा नगर के बाद लोदी काम्प्लैक्स में आवासीय भवनों का निर्माण किया गया। लेकिन कॉम्पलेक्स में सीपीडब्ल्यूडी द्वारा कई स्थानों से क्षतिग्रस्त हो गए कई भवनों के छज्जे भी टूट गए, लेकिन विनय नगर व सेवा नगर के भवन आज भी उसी पुरानी दशा में अडिग खड़े है। जबकि यह समस्त भवनों का निर्माण सीपीडब्ल्यूडी के द्वारा ही किया है, न कि किसी मैट्रो चलित संस्था के। जहां तक भवन निर्माण की बात आती है तो रायसीना हिल्स के साथ जो भवन बनाए गए वह अंग्रेजी कार्यकाल के दौरान भले ही बनाए गए हो, लेकिन उनके ठेकेदार से लेकर सभी वह पुराने लोग थे।
जिन्होंने सीपीडब्ल्यूडी का स्वर्णिम इतिहास लिखा। उनके लिए कुछ प्रतिनिध्यिं द्वारा यह कहा जाना अब इस क्षेत्रा के अनेकों बंगले असुरक्षित है। जिनमें अनेको केंद्रीय मंत्रा तथा अन्य वीआईपी अध्किरी रह रहे हैं। जहां बंगलों की आयु कम या जर्र जर्र अवस्था की बात आती है तो हमारी तकनीकी व्यवस्था आज इतनी विकसित हो गई है कि वह अपनी योग्यता के आधर इस लुटियन जोन की तरह अनेकों सुंदर इमारतें बनाने की क्षमता रखती है। जहां पर कुछ बंगलो तोड़ कर नए बंगले के निर्माण की बात आती है तो उसके लिए अब संसद में पहले से अध्कि सांसद और दिल्ली से बाहर के सांसदों के दिल्ली के निवास पर पद न रहने के बाद उस बंगले को न खाली करना, वह भवनों की कमी को दर्शाता है, और यह परेशानी स्वयं वहां के सांसदों ने खड़ी की है। जिसके लिए लुटियन जोन की बिल्डिंगों को बलि चढ़ाने की बात कही गई है कुछ समय पहले एक ऐसा प्रस्ताव ज्ञात हुआ था जिनमें बड़े बंगलों के स्थानों पर कई बंगले बनाए जाए। लेकिन यह बात आई गई हो गई। लेकिन इसके बाद कुछ क्षेत्रों के बंगलों को तोड़कर जिसमें गोल डाक खाने समीप एलनबाई रोड ;बिसम्बर दास मार्गद्ध पर कुछ बंगलों को तोड़ दिया गया। वहां पर कुछ नए फ्रलैट बना भी दिए गए। अभी कुछ नए फ्रलैट बनाए जाने की कवायद चल रही है। जिनका निर्माण होना है।
sources: google

इसी तरह रेडियो स्टेशन ;महादेव रोडद्ध नई बिल्डिंग बन जाने से उस शांति प्रिय क्षेत्रा में कापफी भीड़ देखने को मिलती है और राष्ट्रपति भवन से लेकर बिलडगन स्ट्रीट तक बसों व अन्य छोटे मोटे वाहनों की वजह से आए दिन जाम जैसी स्थिति बनी रहती है। उसका मुख्य कारण यही है कि जहां एक बंगले में एक या दो कारें होती थी वही अब 300 या 400 की संख्या में रहने वाले लोगों की गाड़ियों की संख्या में खास इजापफा हुआ है और उस लुटियन जोन के शांत क्षेत्रा में भीड़ लगने से जो अशांत वातावरण दिखाई देता है उसे देखकर यही कहा जा सकता है कि अब हमारे लुटियन जोन व राष्ट्रपति भवन के आसपास क्षेत्रों में शांत वातावरण रह जाएगा।

परंतु राजधनी के बदलते पर्यावरण और मौसम की परवाह किसी भी नेता या सांसद को नहीं है कि जिस सांसद भवन के परिसर में बैठकर आप अपनी रोजी रोटी चला रहे हो उसका अस्तित्व खतरे में है और उसकी गरिमा बनाए रखने के लिए संसद के आसपास तथा लुटियन जोन में किसी भी तरह तोड़ पफोड़ तथा पुराने बने नक्शे के विपरीत अगर कोई भी भवन निर्माण होता है तो उसके लिए किसे दोषी माना जाए। जबकि भारतीय हैरिटज व इटैक के जानकारों के मुताबिक किसी भी पुरानी विरासत के भवनों जिनमें चाहे वह मुगलकालीन हो या अंग्रेजी काल के उनसे किसी भी छेड़छाड़ करने पर कड़ी सजा का प्रावधान है। लेकिन उसके बावजूद भी कुछ स्थानों पर इसका समस्त कानून ताक पर रखकर इसका उल्लघंन हो रहा है जो नहीं होना चाहिए।हां मजबूरीवश अगर किसी भवन को तोड़कर उसका निर्माण किया जाता है तो उसका स्वरूप इसी बंगले की पुरानी छवि से मिलता जुलता हुआ होना चाहिए न कि उसके स्थान पर किसी अन्य बंगले का ढांचा।
Source: Google

वैसे हमारे इंजीनियरों की कार्य कुशलता आज भी उसी शैली में देखने को मिलती है जिसमें उन्होंने कनॉट प्लेस स्थित बाबा खडग सिंह मार्ग पर राजीव गांध्ी व्यापार केंद्र का निर्माण इसका ज्वलंत उदाहरण है जिसमें पुराने कनॉट प्लेस की छवि आज भी देखने को मिलती है।

पिफर भी आज हम पुरानी विरासत को संभाल कर व सहेज कर रखना चाहते है तो उसके लिए हमें गंभीरता से सोचना होगा ताकि दिल्ली के पुराने बंगलों के साथ राजधनी का पर्यावरण भी सुंदर बना रहे और हमें गौरव से कह सके कि दिल्ली भारत की राजधनी है।

Comments